रायगढ़। आज 12अगस्त को विश्व हाथी दिवस मनाया जा रहा है l इस अवसर पर हाथियों के सरंक्षण को लेकर शासकीय स्तर पर विभिन्न कार्यक्रम भी आयोजित किये जा रहे है l एक तरफ हाथियों के सरंक्षण की बात कही जा रही है तो दूसरी ओर तथाकथित औद्योगिक विकास की भेंट चढ़ रहे है हाथी l यहां सवाल यह उठ रहा है कि क्या साल में एक दिन हाथी दिवस के रूप में मनाते हुए हाथियों के सरंक्षण पर भाषणबाजी कर लेने से हाथी सुरक्षित रहेंगे? लगातार कट रहे जंगल के कारण हाथियों के रहवास का संकट उतपन्न हो रहा है l छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य के बाद अब रायगढ़ जिले के वन क्षेत्र भी अदानी व अन्य कम्पनियो के हवाले करने की तैयारी शुरू हो गयी है l रायगढ़ जिला कभी सघन वनो से अच्छादित था लेकिन जंगलों को काट कर उद्योग लगा दिये गये है और कुछ बचे भी है तो प्रदूषण की मार झेल रहे है l ऐसे में वन जीवो और हाथियों के रहवास भी समाप्त हो रहे है l रायगढ़ वन मण्डल में तमनार व घरघोड़ा रेंज में हाथी विचरण करते है l इसके आलावा सर्वाधिक हाथी धर्मजयगढ़ वन मण्डल में है l धरमजयगढ़ क्षेत्र सघन वन से घिरा हुआ है जिससे हाथियों एवं अन्य वन्य प्राणियों के रहवास के लिए अनुकुल है। यही वजह है कि धरमजयगढ़ वन मण्डल में हाथियों की संख्या शताधिक है। वहीं इस क्षेत्र में जंगल काट कर ओपन कोयला खदानों के खुलने से हाथी भोजन व पानी की तलाश में आबादी क्षेत्रों में पंहुच रहे हैं। रिहायशी ईलाकों में आवागमन से हाथी और मानव के बीच द्वंद की स्थिति उत्पन्न हो गई है। धरमजयगढ़ क्षेत्र में पिछले दो दशकों में तकरीबन दो सौ ग्रामीणों की मौत हाथियों केे कुचलने से हो चुकी है तो वहीं विभिन्न कारणों से 60 से अधिक हाथियों की भी मौत हुई है। बताया जा रहा है कि इस क्षेत्र में एक दर्जन से अधिक कोयला खदाने प्रस्तावित है। इन खदानों का खुलना सघन वन व जंगली हाथियों व अन्य वन्य प्राणियों सहित ग्रामीणों के लिए भी घातक साबित होगा। कोल ब्लॉक के आबंटन से पहले इस विषय पर सरकार को ध्यान देना होगा तब कही जा कर सही मायने में हाथी दिवस मनाना सार्थक होगा l
रायगढ़ जिले के धरमजयगढ़ सघन वन से घिरा हुआ है। वहीं धरमजयगढ़ वन मण्डल में 6 रेंज आते हैं जिसका कुल रकबा 171341.9 हेक्टेयर है। सघन वन व पानी की प्रचुर मात्रा होने की वजह से यह क्षेत्र अन्य वन्य प्राणियों केे साथ ही हाथियों के रहवास के अनुकुल है। विशेषकर धरमजयगढ़ व छाल रेंज में घने जंगल होने के कारण यहां हाथी काफी संख्या में हैं तथा एलीफेंट कारीडोर के रूप में भी यह क्षेत्र तब्दिल हो चुका है। वहीं इस क्षेत्र में कोयला भी प्रचुर मात्रा में है लिहाजा सरकार कोल खनन के लिए माईन्स की निलामी कर रही है। छाल रेंज में एसईसीएल की खदान संचालित हो रही है। कायेला खदान के लिए काटे जा रहे जंगल से भोजन व पानी की तलाश में हाथी रिहायशी ईलाकों में आ रहे हैं। एक ओर जहां हाथी फसलों को नुकसान पंहुचा रहे हैं वहीं दुसरी ओर मानव वध भी कर रहे हैं। धरमजयगढ़ वन मण्डल में पिछले दो दशकों में लगभग दो सौ ग्रामीणों की हाथी के कुचलने से मृत्यु़ हो चुकी है। इनमें से केवल धरमजयगढ़ व छाल वन परिक्षेत्र में ही शताधिक ग्रामीण हाथियों के कुचलने से अपनी जान गंवा चुके हैं। वहीं दुसरी ओर धरमजयगढ़ वन मण्डल में दो दशकों में 60 से अधिक हाथियों की भी विभिन्न कारणों से मौत हो चुकी है जिसमें धरमजयगढ़ व छाल वन परिक्षेत्र में ही 50 से अधिक हाथियों की मौत होने के मामले सामने आये हैं। ऐसे में कोल ब्लाक खुलने से जंगल समाप्त हो जायेंगे और वन्य प्राणियों के रहवास नष्ट होने से ग्रामीण अंचलों में वन्य प्राणी घुसपैठ करेंगे जिससे जानमाल का खतरा भी हमेशा बना रहेगा।
17 कोल ब्लाक हैं प्रस्तावित
बताया जा रहा है कि छाल क्षेत्र में सचांलित कोयला खदानों के अलावा धरमजयगढ़ व छाल वन परिक्षेत्र में 17 और कोल माईन्स प्रस्तावित हैं जिनमें से 6 कोल ब्लाक की निलामी की जा चुकी है तथा 11 की होना शेष है। जिन 6 कोल ब्लाक की नीलामी हो चुकी है उनमें पुरूंगा अदानी, दुर्गापुर साहपुर एसईसीएल, दुर्गापुर 2 सरिया, दुर्गापुर 2 तराईमाल, बायसी कोल ब्लाक तथा शेरबन कोल ब्लाक शामील हैं। इन खदानों के खुलने पर हाथियों व अन्य वन्य प्राणियों के रहवास की समस्या उत्पन्न होगी तथा जंगल भी नष्ट हो जायेंगे। चुंकि यह क्षेत्र आदिवासी बाहुल क्षेत्र है तथा यहां के निवासियों का जीवन कृषि और वनोपज पर आधारित है। कोल ब्लाक से 52 ग्राम पंचायत प्रभावित होंगी। ऐसे में इस क्षेत्र के ग्रामीणों के सामने भी संकट उत्पन्न हो जायेगा। यही वजह है कि ग्रामीण वन क्षेत्र में प्रस्तावित खदान पर रोक लगाने की मांग कर रहे हैं। सरकार एक तरफ जंगलों को उद्योगो के हवाले कर रही है तो दूसरी ओर हाथियों के सरंक्षण की बात ख रही है यह कैसे सभव होगा l