भारतवर्ष के उत्सव पर्वों में रामनवमी का एक अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। भारतीय ज्ञान परंपरा के अनुसार चैत्र माह में शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को अयोध्या में श्री राम का जन्म हुआ। उन्हें हिन्दू शास्त्रों में भगवान विष्णु का सातवाँ अवतार माना जाता है। ग्रंथों में रामकथा का आदि स्रोत महर्षि वाल्मीकि द्वारा संस्कृत भाषा में रचित रामायण है। कालान्तर में जब संस्कृत जनभाषा नहीं रही तो देश के विभिन्न भागों में अपने-अपने समय में अनेक कवियों मनीषियों ने रामकाव्य की रचना की जिनमें प्रमुख रूप से दक्षिण भारत में तमिल में कम्ब रामायण, तेलगू में रंगनाथ रामायण, मलयालम में कवि अलुतछिन्न द्वारा और कन्नड़ में नागचन्द्र द्वारा रामायण की रचना की गई। इसी तरह बंगाल में कृत्तिवास रामायण और उत्तर भारत में अवधी भाषा में गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रामचरित मानस की रचना की गई। इसी प्रकार देश के अनेक भागों में कई रामकाव्य की रचना हुई। यह एक प्रमुख उपजीव्य काव्य के रूप मंे प्रतिष्ठित हो गया और आधुनिक काल तक रामकथा पर आधारित अनेक रचनाएँ यथा केशवदास की रामचन्द्रिका, मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित साकेत और सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ कृत राम की शक्ति पूजा आदि चर्चित हैं।
भारतीय रामकाव्यों की विश्व की कई भाषाओं में अनुवाद भी हो चुके हैं। रूस, इंग्लैण्ड, थाईलैण्ड, इंडोनिशिया, जर्मनी, फ्रांस आदि देशों में रामकाव्य की पहुॅंच है। रूस में रामलीला का मंचन होता है, इंडोनेशिया में यह वहॉं की लोक कला में प्रमुख स्थान रखता है। यहॉं तक कि ईराक में भी राम की पूजा होती है। इस तरह भारत सहित विश्व के बहुत से देशों में राम की पूजा और उनके चरित्र पर आधारित विभिन्न गतिविधियों का आयोजन होता है। इसी दिन भारत में दुर्गा नवमी भी मनायी जाती है। असल में रावण से माता सीता के उद्धार हेतु श्री राम ने शक्ति की आराधना की थी। इसी प्रसंग के कारण इस दिन दुर्गा नवमी का भी आयोजन होता है।
किसी भी महान व्यक्ति या चरित्र का जन्मोत्सव जब पूरे देश या दुनिया में मनाया जाता है तो उसके पीछे कारण होते हैं कि हम उनके आदर्श चरित्र के समक्ष नतमस्तक होते हैं, उनके प्रति सम्मान व्यक्त करते हैं और और उनके आदर्श उत्तम कर्मों को अपनाते हुए अपने जीवन तथा समाज को सन्मार्ग पर अग्रसर करने हेतु प्रतिबद्धता दुहराते हैं। इसका विशेष महत्व इस बात में अन्तर्निहित होता है कि आज के समय में जो बालक, नवयुवक वर्ग है उन तक यह गौरवशाली प्रेरक कथाएं सम्प्रेषित होती हैं जिससे उनका मानस निर्माण होता है और वे भावी समय और समाज के लिए कल्याणकर्म करने में प्रवृत्त होते हैं। आज के परिवेश में यही सबसे बड़ा प्रश्न चहुॅ ओर आसुरी शक्तियों की तरह ठहाका लगाता हुआ खड़ा प्रतीत हो रहा है। रावण के नेतृत्व में जब आसुरी शक्तियों का अत्याचार चरम पर था तब पीड़ित देवताओं, ऋषियों की प्रार्थना पर भगवान विष्णु ने राम रूप में अवतार लिया था और मानव रूप में अपने उत्तम कर्माें से समाज के समक्ष एक आदर्श प्रस्तुत किया था। मनुष्य यदि श्री राम के चरित्र में विद्यमान सत्य, धर्म, न्याय, त्याग, समर्पण, प्रेम, कर्तव्यपालन, दृढ़ इच्छा शक्ति इत्यादि गुणों से सीख लेकर उन मार्गों का यदि अनुसरण करे तो विश्वास मानिए हम समाज में आज मानवता को कलंकित करने वाली और आम जन जीवन को कष्टकर बनाने वाली जिन समस्याओं को देखते हैं उन सभी का समाधान हो जाना निश्चित है। और यह भी कह सकते हैं कि समाज में कभी कोई समस्या आ ही नहीं सकती।
राम एक आदर्श राजा, नागरिक, पुत्र, पति, भाई, मित्र आदि थे। हर रिश्तों मेें उन्होंने एक अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया। परम शक्तिशाली होते हुए भी उन्होंने अपने शील स्वभाव का हर जगह उत्तम परिचय दिया। वनगमन के समय पिता की विवशता को समझते हुए उन्हें समझाने का प्रयास किया और इसे अपने लिए चौतरफा लाभ वाला प्रसंग बताया। माता की इच्छापूर्ति, रघुकुल के वचन पालन की मर्यादा, अनुज का राज्याभिषेक और वन में ऋषियों संतों का सुदीर्घ संसर्ग एवं आक्रान्ता दुराचारियों से उन्हें मुक्ति दिलाने का प्रयास। इन सभी बातों को उन्होंने अपने अनुकूल बताते हुए पिता को संताप मुक्त करने का भरसक प्रयास किया और आखिर चौदह वर्ष के लिए वन में निकल गए।
आज के युग संदर्भ में राम के आदर्श चरित्र का विशेष महत्व है। एक शक्तिशाली राजा होते हुए भी उन्होंने एकनिष्ठ भाव से अर्द्धांगिनी सीता जी के अतिरिक्त कभी किसी नारी की तरफ तिरछी नजरों से नहीं देखा। आज जिस तरह समाज में चारित्रिक पतन के अगणित उदाहरण दृष्टिगोचर हो रहे हैं वे समाज के लिए बहुत बड़ी चिंता का विषय है। ‘जर, जोरू और जमीन’ की अक्सर चर्चा होती है। सारी समस्याएं इनके इर्द गिर्द घूम गई हैं। हाल ही के दिनों में हमने पश्चिम बंगाल में डॉक्टर युवती के साथ कारूणिक अत्याचार देखा, उत्तर प्रदेश का नीला ड्रम वाला वीभत्स काण्ड देखा, इसी तरह दिल्ली में पति का हृदय विदारक हत्याकाण्ड देखा। न्यायपालिका के संरक्षकों पर तरह-तरह के कीचड़ उछलते देखा। सरकारी तन्त्र में भ्रष्टाचार का एक बड़ा उदाहरण पश्चिम बंगाल शिक्षक भर्ती मामले में 27000 शिक्षकों की नियुक्ति रद्द होने में देखा। पूरे देश दुनिया में नजरें घुमाइये अनगिनत अपकर्म, धतकर्म दिखाई देते हैं। आम आदमी कहॉं जाए, किस पर भरोसा करे, अपने आप को कहॉं सुरक्षित माने और अपने भविष्य के सपने कैसे देखे कुछ भी समझ में नहीं आता। आज स्थिति ये है कि बहुत से माता-पिता अपने बच्चों को शिक्षा, रोजगार के लिए घर से बाहर भेजने में डरने लगे हैं। यह समाज किधर उन्मुख है, कैसा भविष्य सामने खड़ा है पता नहीं। एक तरफ देश ने बड़ा सपना देखा है आजादी के 100 साल पूरे होने पर अर्थात् सन् 2047 में भारत विश्व के विकसित राष्ट्रों की कतार में खड़ा होना चाहिए वहीं दूसरी तरफ राजनीति, प्रशासन, शिक्षा, चिकित्सा, विनिर्माण आदि क्षेत्रों में दृष्टिगत होने वाले भ्रष्टाचार चिंता चुनौती के विषय बने हुए हैं।
एक बात और गौरतलब है हम विज्ञान, प्रोद्योगिकी, व्यापार, आर्थिक समृद्धि की दृष्टि से चाहे जितनी भी तरक्की कर लें। हमारा विकास तब तक समुचित नहीं होे सकता और समाज में वास्तविक खुशहाली नहीं आ सकती जब तक लोगों में चारित्रिक उदत्तता न आए। उनके आचार विचार जब तक उत्तम न हों। ऐसे समय और परिवेश में श्री राम के चरित्र में विद्यमान आदर्श जीवन मूल्यों, सदाचार, प्रेम, करूणा, कर्तव्यनिष्ठा, धर्मपरायणता, त्याग, समर्पण इत्यादि देशवासियों के चरित्र में, मन, वचन और कर्म में व्यवहृत होना अत्यंत आवश्यक है। कुल मिलाकर हर ‘आम में राम’ होना आवश्यक है। यदि यह संभव हुआ तो रामनवमी मनाने की सार्थकता है वरना पूजा पाठ, भजन कीर्तन, रामलीला का मंचन, बड़ी-बड़ी शोभा यात्राएँ और बहुविधि कर्मकाण्ड ये सभी औचित्यविहीन हैं। आइए इस महान अवसर पर हम सभी देशवासी स्वयं एवं समाज की कल्याणकामना से अनुप्राणित होते हुए अपनी भावनाओं, विचारों और क्रियाओं में मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम द्वारा प्रस्तुत आदर्श जीवन मूल्यों का संधारण करने का, उसका संरक्षण और संवर्द्धन करने का न केवल दृढ़ निश्चय करें अपितु उसे अपनी कार्यशैली और स्वभाव में लाकर सहज रूप से समाज के संचालन और खुशहाली में अपनी महती भूमिका का निर्वहन करें। ताकि देश दुनिया की दशा और दिशा बेहतरी की ओर अग्रसर हो सके।
-डॉ. बी. एस. साहू
सहायक प्राध्यापक, हिन्दी