इप्टा रायगढ़ के नाट्य समारोह रंग अजय में मंगलवार को मध्यप्रदेश इप्टा के सीमा राजोरिया व हरिओम राजोरिया को शरद चंद्र वैरागकर स्मृति रंगकर्म सम्मान से सम्मानित किया गया। इस सम्मान का 13वां वर्ष है। हर वर्ष रंगकर्म के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान देने वाले व्यक्ति को यह सम्मान दिया जाता है। इप्टा रायगढ़ के साथ साथ रायगढ़ की विभिन्न संस्थाओं ने भी सीमा राजोरिया व हरिओम राजोरिया को शाॅल-श्रीफल भेंट कर सम्मानित किया।
इप्टा रायगढ़ के साथ सांस्कृतिक संस्था गुड़ी, रिटायर्ड बैंकर्स क्लब, साईं शरण हाउसिंग सोसाइटी, शाहिद कर्नल विप्लव त्रिपाठी मेमोरियल ट्रस्ट, खेल संघ रायगढ़, जिला बचाओ संघर्ष मोर्चा, सद्भावना सांस्कृतिक सेवा समिति, उत्कल सांस्कृतिक सेवा समिति, राष्ट्रीय कवि संगम एवं काव्य वाटिका, ट्रेड यूनियन कौंसिल, छत्तीसगढ़ आंगनबाड़ी कार्यकर्ता सहायिका संघ ने भी सीमा राजोरिया व हरिओम राजोरिया का सम्मान किया।

इप्टा के संरक्षक मुमताज़ भारती ने सुनील चिपडे को सम्मान के लिए बधाई दी। मुख्य अतिथि आशा त्रिपाठी ने
सीमा राजोरिया व हरिओम राजोरिया को सम्मान देने के लिए चयन समिति की भूरी भूरी प्रशंसा की। सीमा राजोरिया व हरिओम राजोरिया ने अपने सबोधन में कहा कि वो रायगढ़ की जनता से मिले प्यार और सम्मान पाकर अभिभूत हैं। उन्हें पहले भी सम्मान मिला है पर इतना प्यार और सम्मान एक साथ रायगढ़ आकर मिला। पूर्व वर्षो में यह सम्मान संजय उपाध्याय, सीमा विश्वास, मानव कौल, कुमुद मिश्रा, बंशी कौल, सीताराम सिंह को दिया जा चुका है।
इप्टा रायगढ़ द्वारा रंगकर्म के क्षेत्र में निरंतर कार्यरत रंगकर्मी को शरदचंद्र वैरागकर स्मृति रंगकर्मी सम्मान 2010 से दिया जा रहा है।
आज शाम को होगा नाटक व्याकरण का मंचन
इस नाटक में गरीब आदिवासियों के विस्थापन के दंश को प्रस्तुत किया गया है, कि किस तरह एक आंदोलन का व्याकरण होता है। किस तरह इस ख़त्म करने का एक व्याकरण होता है एक लड़ाई और इस में शामिल होने वाले लोग उसे सहयोग करने वाले लोग लड़ाई से लाभ लेने वाले लोग का व्याकरण प्रस्तुत करत है। वनवासियों की जगह पर कब्जा करने के लिए कितने तरह के प्रपंच रखे जाते हैं, प्रशासन का अष्टाचार, समाजसेवा का झूठा नकाब, देश की चिंता न करने वाला नागरिक, वनवासियों को वोट बैंक की तरह उपयोग करती सरकार, इस नाट्य प्रदर्शन में तीन प्रमुख विचार सामने लाने की कोशिश की गई है पहला सरकार क्या चाहती है? दूसरा बुद्धिजीवी वर्ग क्या चाहता है? और तीसरा आदिवासी समुदाय क्या चाहता है?