बदकिस्मती से आज आदिवासी दिवस है l यहां बदकिस्मती इसलिए कही जा रही है क्यों कि आदिवासी दिवस मनाने की परम्परा का केवल निर्वहन किया जा रहा है l आदिवसी दिवस की इस समुदाय को बधाई हम किस मुँह से दें l आदिवासियों को लगातार उजाड़ने का काम हो रहा है l एक तरफ नक्सली हिंसा तो दूसरी ओर सिस्टम की गलत नीतियों के कारण लगातार आदिवासियों का अहित हो रहा है l प्रकृति के इन सेवकों को आज प्रकृति से दूर करने की साजिश रची जा रही है l हालांकि छत्तीसगढ़ में लम्बे समय से आदिवासी मुलख्यमंत्री की मांग हो रही थी इस बार आदिवासी समुदाय से सुबे का मुखिया है लिहाजा इस समुदाय को कुछ अच्छा होने की उम्मीद अवश्य जगी है l
प्रदेश में औद्योगिक विकास के नाम पर प्रमुख रूप से आदिवासियों का शोषण हो रहा है l उद्योगो से छत्तीसगढ़ के मुल निवासी आदिवासियों की लड़ाई चली आ रही है l यू तो सरकार चाहे किसी भी दल की हो आदिवासियों के उत्थान के वायदे किये जाते है और विभिन्न लोक लुभावनी घोषणाएं भी की जाती है लेकिन वास्तविकता इसके विपरीत होती है l यहां उद्योगपतियों के आगे सरकार नतमस्तक नज़र आती है l आदिवासियों की जमीन अधिग्रहण कर उद्योगो के हवाले किया जा रहा है l कई आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र का अस्तित्व ही समाप्ति की ओर है l हास्यसपद बात तो तब होती है ज़ब शासन आदिवासी दिवस मनाने की बात करता है और आदिवासियों के हित में लागू की गयी योजनाओं का बखान कर वोट बैंक की राजनीति की जाती है लेकिन आदिवासियों की जमीन पर कब्जा होने की शिकायत, आदिवासियों को प्रताड़ित करने की शिकायत इत्यादि पर कोई कार्रवाई नहीं होती lआदिवासी समुदाय के लोगों का जीवन अमूमन तौर पर क़ृषि व वनोपज पर टीका है लेकिन जंगल औद्योगिक विकास की भेंट चढ़ रहे है तो वहीं क़ृषि भूमि पर भी कल कारखाने लगाये जा रहे है l इस वजह से क़ृषि भूमि व जंगल का रकबा घटते जा रहा है l आदिवासियों की जमीन पर कब्जा करने के मामले में धारा 170 ख के प्रकरण फाइलो में ही दम तोड़ते नज़र आते है l पेसा क़ानून केवल कागजो पर है l एक तरफ हसदेव का पूरा जंगल साफ कर दिया गया तो दूसरी ओर रायगढ़ जिले के तमनार ब्लॉक में आदिवासी बाहुल्य कई गांव औद्योगिक विकास की भेंट चढ़ गये है l आलम यह है कि जो आदिवासी कल तक जमीन मालिक हुआ करता था आज अपनी जमीन में मजदूरी भी नहीं कर सकता l आदिवासी दिवस मनाने से पहले सरकार को इस विषय पर चिंतन करना चाहिए l वहीं इस बात का भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि क्या वाकई आदिवासियों तक सरकारी योजना का लाभ पंहुच रहा है? क्या आदिवासियों के लिए बनाये गये नियमों का पालन हो रहा है? यदि नहीं तो फिर केवल आदिवासी दिवस मनाये जाने का कोई औचित्य नहीं रह जाता l
