रायगढ़ l लगातार कट रहे जंगल के कारण तेन्दु और महुआ की प्राकृतिक वनों में हिस्सेदारी साल-दर-साल कम होती जा रही है। पुराने वृक्षों का संरक्षण और संवर्धन को वानिकी वैज्ञानिक जरुरी मान रहे हैं। साथ ही पौधरोपण में इनके लिए भी जगह छोड़नी होगी ताकि नई श्रृंखला तैयार की जा सके। तेन्दु और महुआ आर्थिक दृष्टि से बेहद अहम स्थान रखते है l वनाचल क्षेत्र में ग्रामीण न केवल तेन्दु के फल की बिक्री करते है बल्कि बीड़ी बनाने के काम में आने वाली इसकी पत्तियों के संग्रहण और विक्रय से वनवासियो के जीवन यापन को मजबूत सहारा मिलता है और इसकी खरीदी सरकार करती है l
वहीं 5 हज़ार रुपय क्विंटल तक बिकने वाला महुआ भी अपनी उपलब्धता और ग्रामीण क्षेत्र के आर्थिक विकास को रेखांकित करता है l वहीं औद्योगिक विकास में लगातार जंगलों के घटता रकबा और प्रदूषण की वजह से तेन्दु और महुआ का उत्पादन प्रभावित हो रहा है l इस वर्ष महुआ तथा तेन्दु पत्तियों और फल का उत्पादन कमजोर रहने की प्रबल आशंका है क्योंकि तेन्दू के वृक्ष कम होने लगे हैं। चिंतित वानिकी वैज्ञानिकों ने पुराने वृक्षों का संरक्षण और संवर्धन की जरूरत बताते हुए कहा है कि समय आ गया है नए वृक्ष तैयार करने का। इसलिए पौधरोपण में तेंदू व महुआ की भी हिस्सेदारी तय की जानी चाहिए, अन्यथा जिस हरे सोने को वनाचल क्षेत्र के रहवासियो की आर्थिक मजबूती का एक प्रमुख साधन माना जाता है वह विलुप्त हो जायेगा l

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