रायगढ़ l इप्टा का ग्रीष्मकालीन बाल नाट्य प्रशिक्षण शिविर का समापन आज रविवार की शाम को पॉलीटेक्निक सभागार में दो नटको के मंचन के साथ समापन होगा l
इप्टा में बच्चों के लिए रंगकर्म की परम्परा संभवतः आगरा इप्टा से हुई थी। इप्टा के रंगकर्मियों, शहर के साहित्यकारों और उनके परिचितों के बच्चों को लेकर ‘लिटिल इप्टा’ की
सांस्कृतिक गतिविधियाँ बीसवीं सदी के छठवें-सातवें दशक से राजेन्द्र रघुवंशी जी के नेतृत्व में शुरु हुई थीं। ज्योत्स्ना रघुवंशी तथा अचला सचदेव ने अपने संस्मरणों में इस बात का उल्लेख किया है। मध्य प्रदेश में जबलपुर, होशंगाबाद आदि इकाइयों में अस्सी के दशक में
बच्चों की नाट्य-कार्यशालाओं की सूचना मिलती है। पिछले कई वर्षों में रायगढ़ के अलावा भिलाई, अंबिकापुर ;छत्तीसगढ़द्ध, अशोक नगर, गुना ;मध्यप्रदेशद्ध लखनऊ, उरई, आगराउत्तर प्रदेशद्ध के अलावा केरल में लगातार बच्चों के साथ इप्टा की इकाइयाँ काम कर रही हैं। इस वर्ष भिलाई, अशोक नगर, गुना और रायगढ़ में कार्यशालाओं के आयोजन की खबरें हैं।1994 में इप्टा रायगढ़ के पुनर्गठन के बाद अचानक 1996 की गर्मियों में उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र, इलाहाबाद से बच्चों की नाट्य-कार्यशाला के लिए स्वीकृति-पत्र आ गया,
जबकि हमने युवाओं की नाट्य-कार्यशाला के लिए आवेदन किया था। स्वीकृति-पत्र आने
के बाद अस्वीकृत करने का तो सवाल ही नहीं था इसलिए स्वीकृति भेज दी गई परंतु हमारी
इकाई में किसी को भी बच्चों के साथ नाट्य-कार्यशाला का अनुभव न होने के कारण हमने विवेचना जबलपुर के निर्देशक साथी अरूण पाण्डे से सलाह-मशविरा किया। वे इस मामले में अनुभवी थे, सो उन्होंने आने का वचन दे दिया। अब समस्या थी, बच्चों को जुटाने की;
तो इस काम में अर्पिता श्रीवास्तव ने पहल करके चक्रधर नगर इलाके में घर-घर जाकर
लगभग 60 बच्चों को तैयार किया, 20 बच्चे अन्य इलाकों से आए। पॉलिटेक्निक के बड़े हॉल
और छत पर कार्यशाला करने की अनुमति तत्कालीन प्राचार्य डी.एन.ठाकुर ने सहृदयता से
प्रदान की।बच्चों की नाट्य-कार्यशाला आरम्भ हुई। अरूण पाण्डेय ने बच्चों की संख्या और उम्र के आधार पर पाँच समूह बनाए और युवा साथियों को एक-एक समूह का समन्वयक सह
निर्देशक बनाया। बच्चों के प्रशिक्षण के साथ-साथ युवाओं का भी प्रशिक्षण हो रहा था कि बच्चों की कार्यशाला कैसे ली जाए! इस नाट्य-कार्यशाला में पाँच नाटक – बॉबी, चावल
की रोटियाँ, पतंग, नन्हा नकलची और अंधे-काने के अलावा दो समूह नृत्य तथा दो समूह गीत भी तैयार हुए। अंतिम दिन इनकी प्रस्तुति हुई, जिसका संचालन भी बच्चों ने ही किया था। साथ ही आमंत्रण पत्र क्राफ्ट और चित्रकला के प्रशिक्षण के दौरान बच्चों से ही तैयार कर बँटवाए गए। बच्चों की प्रस्तुतियों को रंगारंग बनाने के लिए दोपहर भर क्राफ्ट और
कॉस्टयूम का प्रशिक्षण चलता था। कुल मिलाकर 1996 में आयोजित इस पहली बाल
नाट्य-कार्यशाला का प्रशिक्षण पूरी टीम को मिला और इसके बाद तो प्रत्येक गर्मी की छुट्टियों में बच्चों की नाट्य-कार्यशाला या बाल-रंग-प्रशिक्षण शिविर आयोजन का सिलसिला चल पड़ा। इप्टा रायगढ़ गर्मी की छुट्टियों में बच्चों के व्यक्तित्व विकास एवं उनकी रंगमंचीय प्रतिभा को निखारने के लिए ग्रीष्मकालीन बाल नाट्य प्रशिक्षण शिविर का आयोजन करता रहा है। इस वर्ष भी दो स्थानों पर बच्चों को नाट्य प्रशिक्षण दिया जा रहा है। प्रज्ञा विद्या मंदिर मालीडीपा, एवं स्वामी विवेकानंद स्कूल रेलवे बंगला पारा में भारतीय जन नाट्य संघ के प्रशिक्षित निर्देशकों के निर्देशन में 25 मई से सुबह सात बजे से शिविर का आयोजन किया जा रहा है । ग्रीष्मकालीन बाल नाट्य प्रशिक्षण शिविर में थियेटर गेम्स, एक्सरसाइजेस के अलावा अभिनय, संगीत, नृत्य, माइम एवं मूवमेंट्स का प्रशिक्षण दिया गया है। शिविर में तैयार हुए तीन नाटक, 2 समूह नृत्य और जनगीत तैयार किए गए हैं जिसका मंचन रविवार को कमला नेहरू पार्क के सामने स्थित पॉलीटेक्निक सभागार में किया जाएगा।

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