वर्धा : महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में वरिष्‍ठ साहित्‍यकार विनोद कुमार शुक्‍ल को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कुलपति प्रो. कुमुद शर्मा ने कहा कि शुक्‍ल का निधन साहित्‍य जगत के लिए दुखदायी घटना है। अनवरत लिखने वाले लेखक की कलम अचानक थम गयी है। वे हम सब के बीच शब्‍दों के माध्‍यम से जीवित रहेंगे। उनकी साहित्‍य सम्‍पदा सभी के लिए प्रेरणास्त्रोत है। विश्‍वविद्यालय की ओर से बुधवार, 24 दिसंबर को शुक्‍ल को ऑनलाइन माध्‍यम से श्रद्धांजलि दी गयी। इस अवसर पर दो मिनट का मौन रख कर उनके परिवार को आत्मिक बल एवं शक्ति प्रदान करने की कामना की गयी।
विदित है की हिंदी साहित्य के शिखर पुरुष विनोद कुमार शुक्ल (88) लंबे समय से अस्वस्थ थे। उन्‍होंने मंगलवार, 23 दिसंबर को एम्स, रायपुर में अंतिम सांस ली। 21 नवंबर को ही उन्हें साहित्य के सर्वोच्च सम्मान ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ से नवाजा गया था। छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में 01 जनवरी 1937 को जन्मे शुक्ल हिंदी साहित्य की उस दुर्लभ विधा के लेखक थे, जो बिना शोर किए बहुत दूर तक सुनाई देती है। उनकी रचनाएं जीवन के साधारण क्षणों में असाधारण अर्थ खोज लेती थी।
‘लगभग जय हिन्द’ उनका पहला कविता संग्रह 1971 मे प्रकाशित हुआ। उनकी रचनाएं ‘वह आदमी चला गया नया गरम कोट पहिनकर विचार की तरह’, ‘सब कुछ होना बचा रहेगा’, ‘कविता से लंबी कविता’, ‘आकाश धरती को खटखटाता है’ जैसी कृतियां हिंदी कविता की दिशा बदलने वाले मील के पत्‍थर बनीं। गद्य में भी उनकी उपस्थिति उतनी ही प्रभावशाली रही। 1979 में आया उपन्यास ‘नौकर की कमीज’, जिस पर मणि कौल ने फिल्म बनाई, हिंदी उपन्यास की भाषा और दृष्टि को नई जमीन देता है। ‘खिलेगा तो देखेंगे’, ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’, ‘एक चुप्पी जगह’ जैसे उपन्यासों और ‘पेड़ पर कमरा’, ‘महाविद्यालय’, ‘घोड़ा और अन्य कहानियां’ जैसे कहानी संग्रहों ने उन्हें साहित्य का अनिवार्य नाम बना दिया। उनकी रचनाएं कई भारतीय और विदेशी भाषाओं में अनूदित हुई हैं। विनोद कुमार शुक्‍ल को साहित्‍य अकादमिक पुरस्‍कार, गजानन माधव मुक्तिबोध फेलोशिप, रजा पुरस्‍कार, शिखर सम्‍मान, राष्‍ट्रीय मैथिलीशरण गुप्‍त सम्‍मान, दयावती मोदी कवी शेखर सम्‍मान, हिंदी गौरव सम्‍मान और 2023 में पैन-नाबोकोव जैसे पुरस्‍कारों से भी सम्‍मानित किया गया।